नव प्रभात की स्वर्णिम बेला
नव प्रभात की स्वर्णिम बेला उठो जगाने आई है
खुशियों की भर लाई गागर हमें पिलाने आई हैे
चन्दा भी अब बिदा हो रहा दिनकर को भार सौंप दिया
दिनकर ने भी सारे जग को स्वर्णिम किरणें सौंप दिया
नया वर्ष है नई उमंगें भुवन भाष्कर लाये हैं
अन्धकार को दूर भगा स्वर्णिम प्रकाश ले आये हैं
सभी साहित्य मनीषियों को सुप्रभात
कवि विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर
ऋषभ दिव्येन्द्र
24-Apr-2023 10:40 PM
सुन्दर सृजन
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